‘विष के दाँत’ |
लेखक के बारे में
नलिन विलोचन शर्मा का जन्म बिहार की पुण्यभूमि पटना के बदरघाट में 18 फरवरी, 1916 को हुआ। ये जन्म से भोजपुरी भाषी थे। इनके पिता महामहोपाध्याय पं० रामावतार शर्मा दर्शन और संस्कृत के प्रख्यात विद्वान थे। इनकी माता का नाम रत्नावती शर्मा था। इनके व्यक्तित्व पर इनके पिता का बहुत प्रभाव था। इनकी पढ़ाई-लिखाई पटना में ही हुई। इन्होंने स्कूली शिक्षा पटना कॉलेजिएट स्कूल में ग्रहण की। पटना विश्वविद्यालय से इन्होंने संस्कृत और हिन्दी में एम. ए. किया। इन्होंने हरप्रसाद जैन कॉलेज, आरा, राँची विश्वविद्यालय और पटना विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। सन् 1959 में ये पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हुए और मृत्युपर्यंत इस पद पर रहे। इनकी मृत्यु 45 वर्ष की अल्पायु में ही 12 सितंबर, 1961 ई. को हो गई।
इनकी रचनाएँ हैं– ‘दृष्टिकोण’, ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’, ‘मानदंड’, ‘हिंदी उपन्यास विशेषतः प्रेमचंद’, ‘साहित्य तत्व और आलोचना’ (आलोचनात्मक ग्रंथ); ‘विष के दाँत’ और सत्रह असंगृहीत छोटी कहानियाँ (कहानी संग्रह); केसरी कुमार तथा नरेश के साथ काव्य संग्रह – ‘नकेन के प्रपद्य’ और ‘नकेन दो’, ‘सदल मिश्र ग्रंथावली’ ‘अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ, संत परंपरा और साहित्य’ आदि इनके संपादित ग्रंथ हैं।
इनकी कहानियों में मनोवैज्ञानिकता के तत्व समग्रता से उभरकर आए हैं। आलोचना में ये आधुनिक शैली के समर्थक थे। ये कथ्य, शिल्प, भाषा आदि सभी स्तरों पर नवीनता के आग्रही लेखक थे। अनेक पुराने शब्दों को इन्होंने नया जीवन दिया है। प्रस्तुत कहानी ‘विष के दाँत’ सामाजिक भेद-भाव, लिंग-भेद के कुपरिणामों को बताती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की बातों का महत्त्व बता रही है।
पाठ का सारांश
‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी नलिन विलोचन शर्मा लिखित एक व्यंग्य है। यह कहानी अत्यधिक प्यार-दुलार के कुपरिणामों तथा सामाजिक असमानता एवं भेद-भाव को उजागर करती है। सेन साहब को ढलती उम्र में बेटा होता है, उसका नाम काशू रहता है। इस उम्र में पाँच बेटियों के बाद बेटा का होना, उस बच्चे को अत्यधिक प्यार देने के लिए काफी है। सेन साहब अपने बेटा को बहुत प्यार करते हैं। बेटियों को कड़े अनुशासन में रखते हैं। लेकिन, बेटा को कुछ सिखाते ही नहीं। वह जो भी करता है, उन्हें उसमें गुण ही दिखाई देता है। वे अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें उसमें इंजीनियर बनने की संभावना नजर आती है।
वे अपने बेटे की हर शैतानी से खुश होते हैं। जब उनके बेटे ने उनके दोस्त की गाड़ी के पहिए की हवा निकाल दी तो वे उन्हें खुश होकर बताने लगे कि देखा हमेशा वह गाड़ी के पीछे पड़ा रहता है, इंजीनियर जो बनना है । एक गरीब बच्चा जब उनकी गाड़ी को छूकर देखना चाहता है तो उसे उनका ड्राइवर ढकेल कर गिरा देता है; जिससे उस बच्चे को चोट आती है और उसके घुटने से खून निकल आता है। उस बच्चे की माँ जब उन्हें कुछ कहना चाहती हैं तो उल्टे उसको चुप करा देते हैं। उस बच्चे के पिता को बुलाकर डाँटते हैं; बच्चे को अनुशासन सिखाने का उपदेश देते हैं और कहते हैं कि ऐसे बच्चे ही चोर डाकू बनते हैं। उस बच्चे का नाम मदन है। उसका पिता गिरधर घर जाकर अपने बेटे की पिटाई करता है ।मदन अभी तो बच्चा है। लेकिन उसके अंदर भी भावना है। दूसरे दिन काशू जब गली में आकर खेलने की इच्छा जताता है तब मदन उसे खेलने नहीं देता है। इस पर काशू उस पर झपटता है। वह काशू के दो-दो दाँत तोड़ देता है, जिसके कारण उसके पिता को नौकरी से निकाल दिया जाता है। फिर भी उसका पिता उसे गले से लगा लेता है, क्योंकि उसने अपने अपमान का बदला ले लिया था।