Q.1. हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान करें।
Ans – हड़प्पा सभ्यता के लोगों का भोजन निम्न थे : 1. गेहूँ, 2. जौ, 3. चावल, 4. बाजरा, 5. दालें, 6. फल, 7. शाक, 8. सब्जियाँ, 9. दूध-घी,10. मसालें, 11. खजूर, 12. उन्नाब, 13. मछली, 14. माँस
इन खाद्य सामग्रियों का उत्पादन उत्पादक वर्ग और आखेटक वर्ग करते थे।
Q.2. पुरातत्वविद् हड़प्पा समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं। वे कौन-सी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं ?
Ans – विद्वान इतिहासकारों के विचारानुसार हड़प्पाई समाज संभवतः तीन वर्गों में बँटा था (1) विशेष वर्ग: यह वर्ग नगर-दुर्ग से जुड़ा हुआ
था, (2) सम्पन्न मंध्यम वर्ग, (3)आर्थिक दृष्टि से अपेक्षाकृत दुर्बल वर्ग, यह वर्ग नगर के निचले हिस्से में रहते थे।
समाज के ये तीनों वर्ग पर कोटे से घिरे नगर अथवा बस्ती रहते थे। प्राप्त प्रमाणों से लगता हैं कि कुछ शिल्पी एवं श्रमिक नगर के परकोटे से बाहर की बस्तियों में रहते थे। यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता कि इस विभाजन का आधार सामाजिक-धार्मिक थे अथवा केवल आर्थिक कालीबंगन में मिले प्रमाण से पता चलता है कि पुरोहित वर्ग ऊपरी भाग में रहते थे और निचले भाग में स्थित अग्नि वेदिकाओं पर धार्मिक अनुष्ठान करते थे। अतः संभवतः इस सामाजिक वर्गीकरण का प्रमुख आधार आर्थिक घटक ही रहे होंगे। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल लोग नगर के के निचले हिस्से में रहते थे।
पुरातत्वविद् किसी संस्कृति के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक क्रियाओं का पता लगाने के लिए कई विधियों का इस्तेमाल करते हैं। उनमें दो प्रमुख विधियाँ हैं विलासिताओं की वस्तुओं की खोज। पुरातत्वविद् इन दोनों विधियों के अनुसरण द्वारा ही इस – शवधान और निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सिंधु समाज में भिन्नताएँ मौजूद थीं एवं इसका प्रमुख कारण आर्थिक घटक ही थे और पुरातत्वविद् इसी भिन्नताओं पर ज्यादा ध्यान देते थे।
Q.3. क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों के जल निकास प्रणाली नगर-योजना की ओर संकेत करती है। अपने उत्तर के कारण समझाएँ।
Ans – हम इस तथ्य से पूर्णतः सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों के जल निकास प्रणाली नगर-योजना की ओर संकेत करती है क्योंकि प्रत्येक घर में पक्की ईंटों से बनी छोटी नलियाँ होती थीं जो स्नानघरों तथा शौचालयों से जुड़ी हुई होती थी। इनके द्वारा घर का गंदा पानी पास की गली में बनी हुई मध्य आकार की निकास नलियों तक पहुँच जाता था। मध्यम आकार वाली नलियाँ बड़ी सड़कों के साथ-साथ बने हुए नालों में मिलती थीं। सामान्यतया नालियाँ लगभग 9 इंच चौड़ी और एक फुट गहरी होती थी किन्तु कुछ इससे दुगुनी होती थी। उनमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हटाने वाले पत्थर लगे होते थे ताकि आवश्यकतानुसार उन्हें हटाकर नालियों की सफाई की जा सके। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था तथा पुनः उसके अगल-बगल घरों को बनाया गया था क्योंकि घरों की नालियों को नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम-से-कम दीवार की गली के साथ सटा होना आवश्यक था। बड़े नाले ईंटों में अथवा तराशे गए पत्थरों में ढके हुए होते थे। कुछ स्थलों में टोडा-मेहराबदार नाले भी होते थे। उनमें से एक लगभग 6 फूट गहरा है जो संपूर्ण नगर के गंदे पानी को बाहर ले जाता था। मल-जल निकासी के मुख्य नालों पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आयातकार सीढ़ियाँ बनी होती थी। नालियों के मोड़ों पर तिकोनी ईंटों का इस्तेमाल किया जाता था।
Q.4. हड़प्पा सभ्यता में मन बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
Ans – हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची निम्नलिखित है 1. अकोक (corhelian), 2. नौलम (Jasper), 3. स्फटिक, 4. क्वार्ट्ज, 5. ताँबा, 6. कांसा 7. सोना, 8. शंख, 9 फयान्स, 10. पकी ईट
कठोर या ठोस पत्थरों से मनके बनाने की प्रक्रिया सरल नहीं थी। ऐसे पत्थरों से केवल ज्यामितीय आकारों के मनके ही बनाये जाते थे। पुरातत्वविदों का विचार है कि अकीक का लाल रंग एक जटिल प्रक्रिया द्वारा अर्थात् पीले रंग के कच्चे माल और उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर बनाया जाता था। पत्थर के बड़े टुकड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता था। उनमें से बारीक से शल्क निकाले जाते थे तथा और उसके बाद मनके बनाये जाते थे। मनकों को अंतिम रूप देने के उपरांत घिसाई की जाती थी। उन पर पॉलिश की जाती थी तथा उनमें छेद किए जाते थे। इस प्रकार मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाती थी।
Q.5. हड़प्पा सभ्यता में कृषि प्रौद्योगिकी का वर्णन कीजिए। Ans – हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी –
(i) प्राप्त प्रमाणों से ज्ञात होता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहाँ के कई स्थलों से अनाज के दाने प्राप्त हुए हैं। इससे कृषि का संकेत मिलता है।
(ii) मुहरों पर वृषभ या बैल का अंकन मिलता है। वृषभ की कई मृणमूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। विद्वानों का विचार है खेत जोतने और बैलगाड़ी के लिए वृषभ का प्रयोग किया जाता था।
(iii) लोग खेती की जुताई हल से करते थे। चोलिस्तान के कई स्थलों यथा बनावली (हरियाणा) में से मिट्टी के हल के प्रतिरूप मिले हैं। कालीबंगन (राजस्थान) में जुते हुए खेत के साक्ष्य भी मिले हैं।
(iv) फसलों की कटाई के लिए लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलक या धातु के औजार का प्रयोग किया जाता था।
(v) सिंचाई के लिए नहरों और कुओं का प्रयोग किया जाता था। अफगानिस्तान के शोतुंधई में नहरों के अवशेष मिले हैं।
Q.6. हड़प्पा नगरों का विन्यास कैसा था ? इसकी विलक्षणताओं का वर्णन कीजिए।
Ans – हड़प्पों नगरों का विन्यास तथा प्रमुख विलक्षणतायें : हड़प्पा नगरों का विन्यास जाल की भाँति था। नगर एक निश्चित योजना के अनुसार बसाये गये थे। इसकी प्रमुख विलक्षणतायें या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) नगरों में सड़कें बनायी गयी थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़क गलियों से सम्बद्ध थीं। सड़कों और गलियों के कारण नगर कई खण्डों में विभक्त था।
(ii) मकान, सड़कों और गलियों के किनारे बनाये गये थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ों दोनों हो नगरों में दुर्ग थे। इन दुगों में शासक वर्ग रहता था। दुर्गों से बाहर पक्की ईंटों के मकान बने थे जिनमें सामान्य लोग रहते थे।
(iii) मोहनजोदड़ों के प्रमुख सार्वजनिक स्थल दुर्ग में स्थित विशाल स्नानागार है। यह 11. 88 मीटर लम्बा, 7.01 मी. चौड़ा तथा 2.43 मीटर गहरा है। इसका प्रयोग महत्त्वपूर्ण अवसरों पर किया जाता था।
(iv) हड़प्पा नगरों में अनाज के गोदाम भी बनाये गये हैं। हड़प्पा नगर में 6 अन्त: कक्ष हैं।
(v) इन नगरों की निकास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी। घरों का पानी ढकी हुई नालियों के द्वारा नालों में गिरता था। नाले, नगर के बाहर पानी को ले जाते थे।
(vi) लगभग सभी घरों में स्नानागार, कुएँ व आँगन आदि थे। इस प्रकार हड़प्पा नगरों का विन्यास अत्यन्त उच्च कोटि का था।
Q.7. हड़प्पा संस्कृति की कला का 100 शब्दों में वर्णन करें।
Ans – हड़प्पा लोगों की शिल्प और तकनीकी अत्यन्त विकसित थी। इस क्षेत्र में उनकी निम्नलिखित उपलब्धियाँ थीं
(i) हड़प्पा के लोग कांस्य निर्माण और प्रयोग से अच्छी तरह परिचित थे। तांबे में टिन मिलाकर कांसा बनाते थे। हड़प्पाई स्थलों में जो कांस्य के औजार और हथियार मिले हैं उनमें टिन की मात्रा कम है। वस्तुतः टिन उन्हें मुश्किल से मिलता था। कांसे से प्रतिमाओं के साथ कुल्हाड़ी, आरी, छुरा आदि बनाते थे।”
(ii) ये लोग बुनाई कला से भी परिचित थे। वे कपड़े बनाते थे। सूत कातने के लिए तकली का प्रयोग करते थे। बुनकर, सूती और ऊनी कपड़ा बनाते थे।
(iii) हडप्पाई लोग अच्छे राजगिरि भी थे। उनकी कला विशाल इमारतों में देखने को मिलती है।
(iv) ये नाव बनाने का काम भी करते थे।
(v) इनका महत्त्वपूर्ण शिल्प मिट्टी की मुहरें बनाना और मूर्ति का निर्माण था
(vi) ये स्वर्णकारी भी करते थे। ये सोना, चाँदी और रत्नों से आभूषण बनाते थे।
(vii) हड़प्पाई कारीगर मणियों के निर्माण में भी निपुण थे। (viii) ये तुम्हारी कला से भी परिचित थे। बर्तन चाक की सहायता से बनाये जाते थे जो चिकने और चमकीले थे।
Q.8. हड़प्पाई मुहरों का धार्मिक महत्त्व 100 शब्दों में लिखें।
Ans – पकी मिट्टी की मूर्तिकाएँ और सीलों या मुहरों का हड़प्पाई लोगों की धार्मिक प्रथाओं को जानने में विशेष महत्त्व है। हड़प्पा में पकी मिट्टी की मूर्तिकायें भारी संख्या में मिली हैं। ऐसा प्रतीत होता है ये मूर्तियाँ मातृदेवी की मूर्तिकायें हैं क्योंकि एक स्त्रीमूर्तिका के पेट से निकलता हुआ पौधा दिखाया गया है। यह देवी की प्रतीक भी मानी जाती है।
सीलों पर धर्म से सम्बन्धित अनेक आकृतियाँ मिलती हैं। एक सील पर एक पुरुष देवता अंकित है जिसके तीन सींग हैं और इसके आस-पास अनेक पशु अंकित किए गए हैं। इसकी पहचान पशुपति या शिव से की गयी है। सीलों पर पशुओं के अंकन से ज्ञात होता है कि लोग पशुओं की भी पूजा करते थे।
Q.9. सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा बनाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी थीं ?
Ans – (i) सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा प्रयुक्त होने वाले बर्तन चाक पर बने हुए होते थे। यह बात अपने में स्पष्ट करती है कि यह संस्कृति पूर्णतया विकसित थी।
(ii) रूप आर आकार की दृष्टि से इन बर्तनों की विविधता आश्चर्यजनक है।
(iii) पतली गर्दन वाले बड़े आकार के घड़े तथा लाल रंग के बर्तनों पर काले रंग की चित्रकारी आदि हड़प्पा के बर्तनों की दो मुख्य विशेषताएँ हैं।
(iv) इन बर्तनों पर अनेक प्रकार के वृक्षों, त्रिभुजों, वृत्तों और बेलों आदि का प्रयोग करके अनेक प्रकार के नमूने बनाये गये हैं।
Q.10. सिन्धु घाटी के विभिन्न केन्द्रों से जो मुहरें (Seals) मिली हैं उनका क्या महत्व हैं ? अथवा, “पक्की मिट्टी की मूर्तिकाएँ और मुहरें हड़प्पाई लोगों की धार्मिक प्रथाओं पर प्रचुर प्रकाश डालती है।” विवेचन करें।
Ans – सिन्धु घाटी के लोगों की पक्की मिट्टी की मूर्तिकाएँ और मुहरें वहाँ की संस्कृति का विशिष्ट उदाहरण है। यह हड़प्पाई लोगों की धार्मिक प्रथाओं पर काफी प्रकाश डालती है। यह लोग शिव, मातृदेवी आदि की पूजा करते थे यह सब कुछ इन्हीं से पता चलता है। कला की दृष्टि से ये अपना जवाब नहीं रखती। इन मुहरों पर खुदे हुए साँड, गैंडा, हथी, बारहसिंघा के चित्र देखते ही बनते हैं। ये चित्र अपनी वास्तविकता एवं सुन्दरता के लिए अद्वितीय हैं। एक अन्य प्रकार से भी यह मुहरें प्रसिद्ध हैं। कुछ मुहरों पर अभिलेख खुदे हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण हैं। अभी उन पर खुदी लिपि पढ़ी नहीं जा सकी है। जब साहित्यकार इसे पढ़ने में सफल हो जायेंगे तो इन मुहरों का महत्त्व और भी बढ़ जायेगा, इस बात से कौन इंकार कर सकता है।
Q.11. हड़प्पा संस्कृति के प्रमुख स्थलों का वर्णन कीजिए।
Ans – हड़प्पा संस्कृति के लगभग 1000 स्थलों की जानकारी है परन्तु परिपक्व हड़प्पा संस्कृति के स्थल लगभग एक दर्जन हैं जो निम्नलिखित हैं –
(i) हड़प्पा यह स्थल पश्चिमी पंजाब में मिटगुमरी जिले में स्थित है। इसके उत्तर से विशाल और समृद्ध नगर का अवशेष प्राप्त हुआ है।
(ii) मोहनजोदड़ो : यह सिन्ध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है। यहाँ से समृद्ध नगर के साथ-साथ एक विशाल सार्वजनिक स्नानागार भी प्राप्त हुआ है।
(iii) चन्हुदड़ो यह मोहनजोदड़ों से दक्षिण-पूर्व दिशा में 130 किमी० की दूरी पर स्थित है। यहाँ से भी नगर का अवशेष मिला है।
(iv) लोथल यह स्थल काठियावाड़ में स्थित है। विद्वानों के अनुसार यह हड़प्पा संस्कृति का एक बन्दरगाह था। सम्भवतः यहाँ सती प्रथा भी थी।
(v) कालीबंगान यह राजस्थान के गंगानगर जिले की घागर नदी के किनारे स्थित है। यहाँ से भी पूर्ण नगर का अवशेष मिला है।
(vi) बनावली : यह हरियाणा के हिसार जिले में है। यहाँ से हड़प्पा पूर्व और कालीन संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
Q.12. मोहनजोदड़ों की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
Ans – मोहनजोदड़ों की विशिष्टताएँ :
(i) मोहनजोदड़ों विश्व का सर्वाधिक प्राचीन योजनाबद्ध नगर है। यह पाकिस्तान में सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के किनारे है मोहनजोदड़ों का शाब्दिक अर्थ है – मृतकों का शहर। यहाँ खुदाइयों में मुद्दों के अस्थिपंजर मिले थे। आर्य सभ्यता से पूर्व यह नगर सिंधु घाटी के लोगों की सामाजिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र था। इसका क्षेत्रफल लगभग एक वर्ग किलोमीटर था। इस समय यह नगर दो टीलों पर स्थित है।
(ii) मोहनजोदड़ों में वर्तमान नगरों के समान योजनानुसार बनाई गई चौड़ी सड़कें थीं। इसकी मुख्य सड़क 33 फुट चौड़ी है और दूसरी सड़के 13.5 फुट चौड़ी हैं। सभी पूर्व से पश्चिम या उत्तर-दक्षिण की ओर आपस में जुड़ी हुई हैं और एक-दूसरे की समकोण पर काटती हैं। मैक (Machay) के अनुसार इन सड़कों को इस प्रकार से बनाया गया था कि यहाँ पर चलने वाली हवायें एक पंप की भाँति प्रदूषित हवाओं को खींच सकें जिससे वातावरण स्वच्छ रहे। इन बातों से यह प्रतीत होता है कि इस नगर का योजनाबद्ध ढंग से विकास करने के लिए एक उच्चाधिकारी नियुक्त किया जाता था। भवनों के निर्माण के नियमों को कठोरता से लागू किया जाता था और यह भी ध्यान में रखा जाता था कि कोई भी भवन सड़कों के ऊपर न बने।
(iii) इस नगर की एक मुख्य विशेषता जल निकास व्यवस्था (Drainage System) थी। इस नगर को नालियाँ मिट्टी के गारे, चूने और जिप्सम की बनी हुई थी। इनको बड़ी ईंटों और पत्थरों से ढका जाता था जिनको ऊपर उठाकर उन नालियों की सफाई की जा सकती थी। घरों से बाहर की छोटी नालियाँ सड़कों के दोनों ओर बनी हुई थीं जो बड़ी और पक्की नालियों में आकर मिल जाती थीं। घरों से गंदे पानी के निकास के लिए मार्गों के दोनों ओर गड्ढे बने हुए थे।
(iv) गृहवास्तु: मोहनजोदड़ों का गृहवास्तु विशिष्ट था। कई भवनों के केन्द्र में आंगन था जिसके चारों ओर कमरे बने थे। संभवतः आँगन खाना पकाने और कताई करने जैसे गतिविधियों का केन्द्र था। गर्म और शुष्क मौसम में इसका पर्याप्त उपयोग किया जाता था। भूमितल पर बने कमरों में कोई खिड़की नहीं होती थी। इसके अलावा मुख्य द्वार आँगन दिखाई नहीं देता था। इससे पता चलता है कि लोग एकांतप्रिय थे। प्रत्येक घर ईंटों के फर्श से बना स्नानघर था जिसकी नालियाँ सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थी। छत पर जाने के लिए कई घरों में सीढ़ियाँ भी थीं। कई घरों में कुए भी थे।
(v) दुर्ग : मोहनजोदड़ों में बस्तियों की सुरक्षा के लिए दुर्ग था यस्ती का एक भाग पश्चिमी छोटी ऊँचाई वाला भाग होता था तथा एक कम ऊंचाई वाला भाग पूर्वी भाग होता था। दुर्ग ऊंचे स्थान पर होता था। इसके अंदर बड़े-बड़े सरकारी भवन, खाद्यान्न भंडार और बड़े स्नानघर बने होते से इनके निचले ढाँचे तो ईंटों से बने होते थे परन्तु ऊपर के भाग लकड़ी के बने होते थे जो बहुत पहले सड़ चुके थे।
Q.13. हड़प्पावासियों द्वारा सिंचाई के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले साधनों के नामों का उल्लेख कीजिए।
Ans – हड़प्पावासियों द्वारा मुख्यतः नहरें, कुएँ और जल संग्रह करने वाले स्थानों को सिंचाई रूप में प्रयोग में लाया जाता था।
(i) अफगानिस्तान में सौतुगई नामक स्थल से हड़प्पाई नहरों के चिह्न प्राप्त हुए हैं। (ii) हड़प्पा के लोगों द्वारा सिंचाई के लिए कुओं का भी इस्तेमाल किया जाता था। (iii) गुजरात के घोलावीरा नामक स्थान से पानी की बावली (तालाब) मिला है। इसे कृषि को सिंचाई के लिए पानी देने के लिए जल संग्रह के लिए प्रयोग किया जाता था।
Q.14. सेडल कुरेंस पद की व्याख्या कीजिए।
Ans. यह एक भद्दे पत्थर की बनी हुई हाथ के द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली चक्की मात्र होती थी। इसका आकार ठीक घोड़ों की पीठ पर रखी जाने वाली काठी को शक्ल के अनुसार होता था। इसे सिन्धुवासी अनाज पीसने के लिए करते थे। ये सभ्यता से संबंधित अनेक स्तर से भारी संख्या से प्राप्त हुई है और ऐसा लगता है कि ये अनाज को पीसने के लिए केवल मात्र साधन थे। संभवतः यह भद्दे सख्त पत्थर से बनाये जाते थे। ये पत्थर मजबूत चट्टानों या पथरीली रेत के बने होते थे और इन्हें देखने पर ऐसा लगता है कि कुछ मजबूत या कठोर कार्यों के लिए इन्हें उपयोग में लाया जाता था।
Q.15. किन्हीं उन दो बिंदुओं का उल्लेख कीजिए जो यह संकेत दें कि हमारा ज्ञान हड़प्पाई लोगों के जीवन के प्रति अधूरा है।
Ans. (i) आज की तिथि तक विद्वानों ने हड़प्पाई संस्कृति की लिपि को पढ़ने में सफलता प्राप्त नहीं की है।
(ii) अभी तक हमें खोजों द्वारा यह ज्ञात नहीं हुआ है कि कुलीन लोगों को कहाँ दफनाया जाता था।
(iii) कुछ विद्वान यह मानते हैं कि हड़प्पाईवासियों के जहाँ कोई एक शासक या राजा नहीं था और कुछ लोग ये मानते हैं कि हड़प्पा के शहरों में अनेक प्रभावशाली व्यक्ति मिलकर प्रशासन चलाते थे। संदेह में हम हड़प्पाई लोगों के राजनैतिक जीवन के बारे में कुछ भी नहीं जानते।
Q.16. उन वस्तुओं के नाम लिखें जो हड़प्पावासियों द्वारा लिखने के लिए प्रयोग में लाये गये।
Ans – (i) मोहरें (ii) ताँबे के उपकरण (औजार), (iii) कालं धारीधार जारों के रिमों पर, (iv) ताँबे और चिकनी मिट्टी की बनी हुई सारणियों पर, (v) जेवरातों पर, (vi) हड्डियों की सलाखें ,(vi) निशान लगे हुए पर्टी (Board) पर, (vim) घुलनशील पदार्थों पर भी लिखाई की जाती थी। घुलनशील यह पार्थसमय से गुजरने के साथ समाप्त हो गये। (vi) निशान लगे हुए पर्टी (Board) पर, (vim) घुलनशील पदार्थों पर भी लिखाई की जाती थी। घुलनशील यह पार्थसमय से गुजरने के साथ समाप्त हो गये।
Q.17. विकसित हड़प्पा संस्कृति से आरंभिक सांस्कृतिक विद्यमान थी व्याख्या कीजिए।
Ans – हडप्याई संस्कृति अथवा सिंधु घाटी सभ्यता क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। ये संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मुगाण्ड शैली से संबद्ध थीं तथा इनके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं। बस्तियाँ आम तौर पर छोटी होती थी और इनमें बड़े आकार की संरचनाएँ न के बराबर थीं। कुछ स्थलों पर वाह पैमाने पर अग्निकुण्ड तथा कुछ अन्य स्थलों के स्थान दिये जाने से ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभिक रुहप्पा तथा हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम-भंग था।
Q.18. सिंधु घाटी सभ्यता में नालों के निर्माण का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
Ans – नालों का निर्माण (Laying out drains) हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। यदि आप निचले शहर को नक्शे को देखें तो आप यह जान पायेंगे कि सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पह नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।
Q.19. ‘सिन्धु घाटी के कुछ स्थल दुर्ग निर्माण की विभिन्न विशेषताओं को दर्शातें हैं।’ संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
Ans. दुर्ग (Citadels) यद्यपि ज्यादातर हड़प्पा बस्तियों में एक छोटा ऊंचा पश्चिमी तथा एक बड़ा लेकिन निचला पूर्वी भाग है, पर इस नियोजन में विविधताएँ भी हैं। धौलावीरा तथा लोग (गुजरात) जैसे स्थलों पर पूरी बस्ती किलेबन्द थी, तथा शहर के कई हिस्से भी दीवारों से घेर अलग किये गये थे। लोधल में दुर्ग दीवार से घिरा तो नहीं था पर कुछ ऊँचाई पर बनाया गया था ।
Q.20. गृह आँगन में कौन-कौन सी गतिविधियों की जाती थीं ?
Ans – हड़प्पाई सभ्यता केन्द्रों से संबंधित भवनों के आँगनों में संभवतः खाना पकाने औ कटाई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र का था, खासतौर से गर्म और शुष्क मौसम में घर के मु द्वार से आँगन को सीधा नहीं देखा जा सकता था। प्राय: इस स्थान का घर के सदस्यों की एक (Privacy) को बनाये रखने के लिए प्रयोग किया जाता था।
Q.21. पुरातत्त्वविद् उत्पादन केन्द्रों की पहचान करने के लिए क्या विधि अपनाते हैं। संक्षेप में लिखिए।
Ans – पुरातत्वविदों द्वारा उत्पादन केन्द्रों की पहचान (Identify centres of production by Archaclogist) : शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद् सामान्यतः निम्नलिखि को ढूँढ़ते हैं: प्रस्तर पिण्ड, पूरे शंख तथा ताँबा-अयस्क जैसा कच्चा माल; ओजार; अपूर्ण वस्तु त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट यहाँ तक कि कूड़ा-करकट शिल्प कार्य के सबसे अच्छे संकेतकों में से एक हैं। उदाहरण के लिए, यदि वस्तुओं के निर्माण के लिए शंख अथवा पत्थर को काटा जाता था तो इन पदार्थों के टुकड़े कूड़े के रूप में उत्पादन के स्थान पर फेंक दिये जाते
Q.22. हड़प्पाई लोगों के बाँट का संक्षेप में परिचय दीजिए।
Ans. हड़प्पाई लोगों के बाँट (The weights of the Harappans) : विनिमय बोरों क एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाली द्वारा नियंत्रित थे। ये बाँट सामान्यतः चटं नामक पत्थर से बनाये जा थे और आम तौर पर ये किसी भी तरह के निशान से रहित धनाकार होते थे। इन बाँटों के नियंत मानदण्ड द्विआधारी (1, 2, 4, 8, 16, 32 इत्यादि 12,800 तक) थे जबकि ऊपरी मानद्णड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे। छोटे बाँटों का प्रयोग संभवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था। धातु से बने तराजू के पलड़े भी मिले हैं।
Q.23. हड़प्पा संस्कृत को कांस्य युग सभ्यता क्यों कहते हैं ?
Ans. (i) हड़प्पा के लोगों को ताँबे में टिन मिलाकर काँसा बनाने की विधि आती थी।
(ii) काँसे की सहायता से ही हड़प्पा के लोग उन्नति के शिखर पर पहुँच सके। उन्होंने एक नगरीय सभ्यता का विकास किया। अतः हड़प्पा संस्कृति को कांस्य युग सभ्यता कहते हैं।
Q.24. हड़प्पा संस्कृति की खोज के समय व विस्तार के विषय में लिखें।
Ans. (i) समय (Period) सन् 1921-25 में दो नगरों हड़प्पा व मोहनजोदडों की खोज राखालदास बनर्जी और दयाराम साहनी ने की थी।
(ii) सभ्यता का विस्तार क्षेत्र (Extension of the civilisation): पंजाब, सिन्ध,बिलोचिस्तान, मिण्टगुमरी, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली।
Q.25. हड़प्पा संस्कृति की ‘माप-तोल प्रणाली और वैदिक काल के ग्रामीणी’ के विषय में व्याख्या करें।
Ans. (i) खुदाई में 16 के गुण में बाँट प्राप्त हुए हैं, जैसे-16, 64, 160, 320, 640 आदि। कई प्रकार के माप सम्बन्धी फीते भी मिले हैं।
(ii) वैदिक सामाजिक व्यवस्था की प्रथम इकाई परिवार था। ग्रामीणी गाँव का मुखिया होता था, वह आपसी झगड़ों का निर्णय करता था और वह अपराधो को दंड भी दे सकता था। ग्रामीणो की नियुक्ति राजा करता था।
Q.26. अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा सिन्धु घाटी की सभ्यता के विषय में हमारी जानकारी कम क्यों है ?
Ans. (i) उस काल की लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
(ii) केवल पुरातात्त्विक अवशेषों का अध्ययन करते हुए अनुमान के आधार पर ही सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में (सभ्यता का समय व विकास आदि का) ज्ञान प्राप्त कर पाए हैं जबकि अन्य सभ्यताओं के सम्बन्ध में जानकारी का मुख्य आधार उनकी लिपि का पढ़ा जाना है।
Q.27. किस आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा संस्कृति में व्यक्तिगत स्वच्छता और नागरिक सफाई पर ध्यान दिया जाता था ?
Ans. (i) खुदाई में एक विशाल स्नानागार का मिलना, घरों में कुएँ व स्नानागार का होना इस बात को स्पष्ट करता है कि लोग सफाई का ध्यान रखते थे।
(ii) नगर की सफाई के लिये शहर से बाहर बड़े-बड़े कूड़ेदान थे तथा घरों से निकलने वाली नालियाँ एक बड़े नाले में मिलती थीं। कुछ नालियाँ ढँकी हुई थीं। नगर स्वच्छ और सड़कें चौड़ी थीं। अत: सफाई का विशेष ध्यान रखने के कारण हम कह सकते हैं कि हड़प्पा संस्कृति विकसित व सभ्य संस्कृति थी।