कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद मेरे सर्वप्रिय लेखक हैं और उनका प्रसिद्ध उपन्यास गोदान सर्वाधिष्ठ प्रिय पुस्तक हिंदी कयासाहित्य में प्रेमचंद की प्रतिमा युगातर स्थापित करती है। प्रेमचंद के पूर्व देवकीनंदन खत्री, किशोरीलाल गोस्वामी, गोपालदास गहमरी आदि के तिलस्मी-ऐय्यारी उपन्यासो का जमाना था। उपन्यास या तो मनोरंजन का साधन या अथवा अभिभावक की नजर बचाकर पढ़ने का रहस्यपुराण पहली बार प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को ‘मनोरंजन’ के स्तर से ऊपर उठाकर उसे जीवन के व्यापक फलक पर ला खड़ा किया। उन्होंने अपने उपन्यासों में शोषितों दलितों, पीड़ितों की जीवनगाथा बड़े ही हृदयवेधक एवं सशक्त शब्दों में व्यक्त की है। जनसमाज में व्याप्त विषमता के अनगनित चित्र उनके साहित्य में भरे पड़े हैं। उनके उपन्यासों में राष्ट्रीय आंदोलन कृषक समस्या, मानवतावाद, भारतीय संस्कृति, सामती समाज और उसका अत्याचार, विधवा-विवाह, अनमेल विवाह, दहेज प्रथा आदि विविध विषय कछात्मक अभिव्यक्ति के साथ प्रकट हुए हैं।
प्रेमचंद ने लगभग 36 वर्षों के अपने साहित्यिक जीवन में तीन सौ से अधिक कहानियाँ, एक दर्जन उपन्यास, तीन-चार नाटक. भरपूर निबंध तथा वालोपयोगी साहित्य की रचना की। उन्होंने दूसरी भाषाओं से अनुवाद भी किया। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन की शुरूआत उर्दू भाषा और साहित्य से की थी, किंतु जल्दी ही वे हिंदी भाषा में रचनाएँ करने लगे, क्योंकि जिन उद्देश्यों को लेकर ये साहित्य-कर्म में प्रवृत्त हुए थे, उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंदी जैसी व्यापक जनाधार वाली भाषा और पाठकवर्ग की जरूरत उन्हें महसूस हुई। उनका साहित्य समाजवादी जीवन-दर्शन, धर्म निरपेक्षता, मानवता, विश्वबंधुत्व आदि का उद्घोष करता है। बीसवीं सदी के आरंभिक चार दशकों की अपने राष्ट्र की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक सांस्कृतिक हलचलो का जैसा सच्चा चित्र प्रेमचंद के साहित्य में उपस्थित हुआ है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। भारतीय जनता का विविध और विराट दर्शन उनके साहित्य में होता है।
प्रेमचंद की अनेक अमर कृतियाँ हैं। ‘कफन’, ‘पूस की रात’, ‘ईदगाह’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘पंच परमेश्वर’ आदि अनेक कहानिया हैं जो विश्व साहित्य की अमर कहानियों की पंक्ति में बैठती हैं। उनके उपन्यास हिंदी उपन्यास की वयस्कता की प्रभावशाली उद्घोषणा हैं। सामाजिक यथार्थ की जिस समस्या को उनके पूर्ववती उपन्यासकारों ने बहुत ही कच्चे ढंग से उठाया था, आदर्श और बधार्थ के अलग-अलग खानों में बाँटकर देखा था, उसे प्रेमचंद संयुक्त और सश्लिष्ट रूप से उठाते और उमारते हैं। उनकी कथा-कृतियाँ घटना और अनुभव बहुत, दोनों हैं। उपन्यासकार के रूप में प्रेमचंद की बड़ी सफलता इस बात में भी है कि उन्होंने अच्छी किस्सागोई को व्यापक रचना-दृष्टि के साथ जोड़ा है। उनके पहले ये दोनों तत्व अलग अलग थे। स्वयं प्रेमचंद इस जोड़ को लंबे प्रयत्न के बाद ढाल सके। ‘सेवासदन’ से लेकर ‘गोदान’ में पहुँच कर यह सतुन पूरा होता है।
‘गोदान’ न केवल प्रेमचंद के विचारों का, बल्कि उनकी कला का भी चरम विकास है। इस उपन्यास में अपने समय के भारतीय जीवन को प्रेमचंद ने इस प्रकार समेट लिया है कि यह एक साहित्यिक ग्रंथ होते हुए भी इतिहास और समाजशास्त्र के ग्रंथ से भी अधिक प्रामाणिक हो गया है। उस समय के भारतीय मनुष्य के हालात को जानने के लिए ‘गोदान’ से अधिक प्रामाणिक ग्रंथ शायद ही दूसरा मिले। ‘गोदान’ का नायक होरी न केवल उपन्यास का नायक है, बल्कि भारतीय किसान का प्रतिनिधि चरित्र भी है। इस उपन्यास में जो यथार्थवादी दृष्टि है और वास्तविकता की जो पहचान है, वही इसका अर्थ और मूल्य है। सचमुच, कयासम्राट, प्रेमचंद अपनी अंतर्दृष्टि, विलक्षण प्रतिमा, गहरी संवेदना एवं अद्भुत चित्रण शक्ति के कारण हमारे लिए सदा हृदयहार बने रहेंगे।