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Biology 12th VVI Questions part – 02 (मानव जनन)
Q.1. हमारे समाज में पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताएँ कि यह क्यों सही नहीं है ?
उत्तर – स्त्री में XX गुणसूत्र तथा पुरुष में XY गुणसूत्र पाये जाते हैं। जब स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का Y गुणसूत्र मिलते हैं तो पुत्र (XY) उत्पन्न होता है। इसके विपरीत स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का X गुणसूत्र मिलने पर पुत्री (XX) उत्पन्न होती है। अतः उत्पन्न संतान का लिंग निर्धारण पुरुष के गुणसूत्र द्वारा होता है न कि स्त्री के गुणसूत्र से। चूंकि पुरुष में 50% X तथा 50% Y गुणसूत्र होते हैं। अतः पुरुष के गुणसूत्र का X या Y होना ही सन्तान के लिंग के लिए उत्तरदायी है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को देना सर्वदा गलत है।
Q.2. प्रसव (पारट्यूरिशन) क्या है? प्रसव को प्रेरित करने में कौन-से हॉर्मोन शामिल होते हैं ?
उत्तर – गर्भकाल पूरा होने पर पूर्ण विकसित शिशु का माता के गर्भ से बाहर आना, प्रसव (पारट्यूरिशन) कहलाता है। इस दौरान गर्भाशयी तथा उदरीय संकुचन होते हैं व गर्भाशय फैल जाता है। जिससे गर्भस्थ शिशु बाहर आ जाता है। प्रसव का प्रेरण ऑक्सिटोसिन, एस्ट्रोजेन व कॉर्टिसोल नामक हार्मोन करते हैं।
Q.3. आर्तव चक्र क्या है? आर्तव चक्र (मेन्स्ट्रअल साइकिल) का कौन-से हार्मोन नियमन करते हैं ?
उत्तर – मादाओं (प्राइमेट्स) में अण्डाणु निर्माण 28 दिन के चक्र में होती है जिसे आर्तव चक्र अथवा मासिक चक्र या ऋतु स्राव चक्र कहते हैं। प्रत्येक स्त्री में यह चक्र 12-13 वर्ष की आयु से प्रारम्भ हो जाती है तथा 45-55 वर्ष की आयु में खत्म हो जाता है। यह चक्र अण्डाशय में अण्डाणु निर्माण को दर्शाता है तथा इसके प्रारम्भ होने के साथ ही मादा गर्भधारण में सक्षम हो जाती है। आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) का नियमन निम्न दो हामोंन करते हैं-(i) LH हार्मोन (ii) FSH हॉर्मोन।
Q.4. निम्नलिखित के कार्य बताइए –
- पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम)
- गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम)
- अग्र पिंडक (एक्रोसोम)
- शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल)
- झालर (फिम्ब्री)
उत्तर –
- पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम) – यह प्रोजेस्ट्रॉन, एस्ट्रोजेन, रिलेक्सिन नामक हार्मोन का स्राव करता है जो गर्भाशय के अन्तः स्तर को बनाए रखते हैं।
- गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम) – यह निषेचित अण्डे के प्रत्यारोपण तथा सगर्भता के लिए आवश्यक है। मासिक चक्र के दौरान इसमें परिवर्तन आता है। यह अपरा निर्माण में भी सहायक है।
- अग्र पिंडक (एक्रोसोम) – इसमें उपस्थित एन्जाइम, निषेचन में सहायक होते हैं।
- शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल) – यह शुक्राणु के गमन में सहायता करती है।
- झालर (फिम्ब्री) – यह अण्डोत्सर्ग के समय; अण्डाशय से निकले अण्डाणु के संग्रह में सहायता करती है |
Q.5. पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य क्या हैं ?
उत्तर – पुरुष की सहायक नलिकाओं के प्रमुख कार्य निम्न हैं –
- ये वृषण से शुक्राणुओं को मूत्र मार्ग द्वारा बाहर लाती हैं।
- ये शुक्राणुओं का संग्रह करती हैं।
पुरुष की सहायक ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य निम्न हैं –
- पुरस्थ द्रव का स्राव करना जो शुक्राणुओं को सक्रिय करता है।
- काउपर्स ग्रन्थि चिपचिपा तरल स्रावित करती है जो योनि को चिकना बनाता है।
- नर हार्मोन उत्पन्न करना।