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Biology 12th VVI Questions part – 02 (विकास)

Biology 12th VVI Questions part – 02 (विकास)


Q.1. क्या सभी प्रकार के उत्परिवर्तन जीवों के लिए हानिकारक होते हैं ? अगर नहीं तो क्यों ?

उत्तर – सभी प्रकार के उत्परिवर्तन जीवों के लिए हानिकारक नहीं होते हैं क्योंकि कुछ उत्परिवर्तन तो संरचनात्मक होते हैं जिनके प्रभाव जीव के शरीर पर स्पष्ट दिखाई देते हैं; जैसे- हमारे बालों, त्वचा, नेत्रों आदि का काला या भूरा होना। इसके अतिरिक्त कुछ जीन उत्परिवर्तन के बाद जीव को (विशेषकर जीवाणुओं को) पूरकपोषी (auxotrophic) बना देते हैं। कुछ जीनी उत्परिवर्तन ही प्राण घातक (lethal) या प्रतिबन्धित प्राण घातक (conditional lethal) होते हैं।

Q.2. अनुकूली विकिरण क्या है? इसके किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – अनुकूली विकिरण (Adaptive Radiation) – एक विशेष भू-भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिन्दु से प्रारम्भ होकर अन्य भू-भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होने को अनुकूली विकिरण कहते हैं। उदाहरण-गैलापैगोस द्वीप समूह पर डार्विन की फिंचे पक्षियों का अनुकूली विकिरण तथा ऑस्ट्रेलिया में शिशुधानी जन्तुओं में अनुकूली विकिरण।। अनुकूली विकिरण के लिए उत्तरदायी तीन प्रमुख कारण निम्न हैं –

  1. प्रकृति में एक जीव-जाति की उत्पत्ति एक बार तथा एक क्षेत्र में होती है।
  2. किसी जाति की आबादी बढ़ने पर इसके सदस्य उत्पत्ति क्षेत्र के चारों ओर फैल जाते हैं।
  3. एक ही जाति के जीवों में अलग-अलग वातावरण के अनुरूप परिवर्तन होने से नई प्रजातियाँ बनती हैं।

Q.3. डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – जैव विकास को समझाने के लिए डार्विन ने प्राकृतिक वरणवाद या प्राकृतिक चयनवाद प्रस्तुत किया। इसके अनुसार प्रत्येक जीव में सन्तान उत्पत्ति की प्रचुर क्षमता पाई जाती है। इनमें से अधिकांश जीव वृद्धि करके अपनी जनसंख्या बढ़ाते हैं। इस बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण समान जाति या भिन्न-भिन्न जाति के जीवों के बीच अस्तित्व के लिए संघर्ष शुरू हो जाता है। ये संघर्ष प्रायः समान आवश्यकताओं के लिए होता है। संघर्ष में वे जीव ही जीतते हैं जिनमें सामान्य जीवों से हटकर कुछ अलग विभिन्नताएँ (variations) पाई जाती हैं। ये विभिन्नताएँ आनुवंशिक होती हैं और प्रकृति द्वारा जीवों में उत्पन्न की जाती हैं। इस प्रकार विभिन्नताओं से युक्त जीव ही आने वाली पीढ़ियों में जीवित रहते हैं। ये जीव वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को सहने में समर्थ होते हैं।

Q.4. लैमार्क के मूल आधार क्या थे ? 

उत्तर – लैमार्क के मूल आधार निम्नलिखित हैं –

  1. जीव के आन्तरिक बल में जीवों के आकार को बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है जिसका अर्थ यह है कि जीवों के पूरे शरीर तथा उनके विभिन्न अंगों में बढ़ने की प्रवृत्ति होती है।
  2. जीवों की लगातार नयी जरूरतों के अनुसार नये अंगों तथा शरीर के दूसरे भागों का विकास होता है।
  3. किसी अंग का विकास तथा उसके कार्य करने की क्षमता उसके उपयोग तथा अनुपयोग पर निर्भर करती है। लगातार उपयोग से अंग धीरे-धीरे मजबूत हो जाते हैं तथा पूर्णतः विकसित हो जाते हैं। जबकि उनके अनुपयोग से इसका उल्टा प्रभाव पड़ता है। इससे इन अंगों का धीरे-धीरे अपह्रास (degeneration) हो जाता है और अन्त में ये लुप्त हो जाते हैं।
  4. इस प्रकार जीवनकाल में आये परिवर्तनों को जीव उपार्जित (acquire) कर लेता है और उसे आनुवंशिकी (heredity) द्वारा अपनी संतानों में पहुँचा देता है।

Q.5. भौमिक समय सारणी क्या है? कौन-सा महाकल्प सरीसृप युग कहलाता है और क्यों ?

उत्तर – पृथ्वी का आवरण बनने से लेकर पृथ्वी के इतिहास के सम्पूर्ण समय का मापक्रम भौमिक समय सारणी (geological time scale) कहलाता है।
मीसोजोइक महाकल्प को सरीसृप का युग कहा जाता है क्योंकि इस महाकल्प में पूरी पृथ्वी पर विशालकाय सरीसृपों जैसे डायनोसोर का आधिपत्य था।

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