उषा कवि के बारे में
शमशेर बहादुर सिंह अज्ञेय, नागार्जुन आदि के समकालीन कवि रहे हैं। दूसरे सप्तक के कवि के रूप में इनको विशेष ख्याति मिली। उर्दू काव्य की समझ के चलते इनकी काव्य भाषा में एक नाजुक सी रवानगी मिलती है। कम शब्द खर्च करके वे व्यापक संदर्भ का मानो गतिमय चित्र उपस्थिति कर देते हैं। वे वस्तुतः बिंबों के कवि हैं अनुभव की व्यापकता और गहनता को बिंब ही प्रकट कर पाते हैं।
उषा पाठ का सारांश
प्रस्तुत कविता में कवि ने उषा के सौंदर्य वर्णन में जिन बिंबों प्रयोग किया है, वह उन्हें एक चित्रकार की तरह प्रकट करते हैं। लगता है कि वे उषा के सौंदर्य को विविध रंग-विरोधों के प्रतिदर्शों के माध्यम से प्रकट कर रहे हों। ये बिंब कवि द्वारा ग्रामीण परिवारों के दैनिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं और स्थितियों से उठाये गये हैं। कविता अपने आरंभ में एक स्थिति को सूचित करती है। आरंभ का ही बिंब शंख के रूप में प्रकट हुआ है। मानो कवि उषाकाल के वर्णन का शंखनाद करके पवित्र आरंभ कर रहा हो। पुनः यही उषा-वर्णन रंगों के विविध प्रतिदर्थों के माध्यम से गति पकड़ता है। राख से लीपा चौका है जो घर की दिनचर्या के आरंभ की ही प्रतिध्वनि प्रकट करता है। इसी तरह काली सिल को लाल केसर से धुलने का बिंब, स्लेट पर लाल खड़िया मलने का बिंब, या नीले जल में किसी गौरवर्णा की देह झिलमिलाने का बिंब अंततः कविता में एक गत्यात्मक परिवेश खड़ा कर देता है। यह कविता प्रकृति और भाषा के बीच गहन रागात्मक संश्लेष का उदाहरण है।
उषा Subjective Question
Q. 1. प्रातःकाल का नभ कैसा, था ? ‘उषा’ कविता में कवि को सुबह का आकाश कैसा दिखता है ?
उत्तर – प्रातःकाल का नभ बहुत नीला शंख जैसा था
Q. 2. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर – ‘राख से लीपा हुआ चौका’ से कवि भोर में ओस की बूँदों से भींगे हुए नभ की ओर इशारा करता है। जैसे रात को भोजन पकाने के बाद ग्रामीण घरों में चौके को मिट्टी और ख से लीप दिया जाता है और वह सुबह होने तक स्निग्ध तथा भींगा सा रहता है, उसी तरह कवि ने भोर के नभ की स्निग्धता तथा ओसयुक्तता को इस प्रतीक के माध्यम से प्रकट किया है।
Q.3. बिंब स्पष्ट करें–
उत्तर – ‘बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’
यहाँ कवि ने रंगों के विभिन्न रूपों के माध्यम से भोर के नभ के दृश्य को प्रकट कर दिया है, अतः यहाँ दृश्य बिंब है।
Q.4. उपा का जादू कैसा था ?
उत्तर – उषा का जादू ऐसा था कि वह द्रष्टा को अपनी विविध वर्णमयी आभा में बॉ लेता हो। द्रष्टा कवि को वह अपनी स्वच्छता के चलते नीले शंख की तरह, ओस से भींगे होने तथा स्निग्ध होने की वजह से राख से लीपे हुए भींगे चौके की तरह, लाल केसर से धो दी गई बहुत काली सिल की तरह, लाल खड़िया चाक से मल दी गई स्लेट की तरह, किसी गौरवण की नीले जल में झिलमिल करती देह की तरह सम्मोहित करती है।
Q. 5. ‘लाल केसर’ और ‘लाल खड़िया चाक’ किसके लिए प्रयुक्त है ?
उत्तर – ‘लाल केसर’ और ‘लाल खड़िया चाक’ यहाँ उपा काल में सूर्य की मद्धिम रक्तिम किरणों के लिए प्रयुक्त हैं।
Q. 6. व्याख्या करें–
(क) जादू टूटता है इस उषा का अब / सूर्योदय हो रहा है।
उत्तर – कवि यहाँ सुबह होने से ठीक पहले के समय अर्थात् उपाकाल का चित्रण करता है। वह एक कुशल चित्रकार की तरह उषाकाल के दृश्य के उसके मन में पड़े प्रभाव को विभिन्न रंग-विरोधों के विवात्मक प्रतिदर्शो से प्रकट करता है। उपा का जादू ऐसा था कि वह द्रष्टा कवि को अपनी विविध वर्णमयी आभा में बांध लेता है। द्रष्टा कवि को वह अपनी स्वच्छता के चलते नीले शंख की तरह, ओस से भींगे होने तथा स्निग्ध होने की वजह से राख से लीपे हुए भींगे चौके की तरह, लाल केसर से धो दी गई बहुत काली सिल की तरह, लाल खड़िया चाक से म दी गई स्लेट की तरह, किसी गौरवर्णा की नीले जल में झिलमिल करती देह की तरह सम्मोहित करता है। और सुबह होने के साथ ही प्रकाश के तेज हो जाने से यह रंगों से भरा दृश्य धीरे-धीरे मिट रहा है। इसे ही कवि उपा के जादू का टूटना कहता है।
(ख) बहुत काली सिल जरा से लाल कैंसर से / कि जैसे धुल गई हो
उत्तर – कवि यहाँ सुबह होने से ठीक पहले के समय अर्थात् उषाकाल का चित्रण करता है। वह एक कुशल चित्रकार की तरह उपाकाल के दृश्य के उसके मन में पड़े प्रभाव को विभिन्न रंग-विरोधों के विवात्मक प्रतिदर्शों से प्रकट करता है। वह इस दृश्य का वर्णन करते हुए कहता है कि सूर्य की मद्धम लाल किरणें और नीले विस्तृत आकाश के रंग ओस की मौजूदगी में परस्पर इस तरह से हिल-मिल गये हैं, मानो किसी काली सिल को लाल केसर से धो गया हो।
Q.7. इस कविता की विव योजना पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर – शमशेर विवों के कवि हैं। अनुभव की व्यापकता और गहनता को दिव ही प्रकट कर पाते हैं। यहाँ कवि ने उपा के सौंदर्य वर्णन में जिन विंवों का प्रयोग किया है, वे उसे एक चित्रकार की तरह प्रकट करते हैं। लगता है कि कवि उषा के सौंदर्य को विविध रंग-विरोधों के प्रतिदर्शो के माध्यम से प्रकट रहा हो। ये बिंब कवि ने ग्रामीण परिवारों के दैनिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं और स्थितियों से उठाये हैं। द्रष्टा कवि को वह (उषा) अपनी स्वच्छता के चलते नीले शंख की तरह, ओस से भींगे होने तथा स्निग्ध होने की वजह से राख से लीपे हुए भीगे की तरह, लाल केसर से धो दी गई बहुत काली सिल की तरह, लाल खड़िया चाक से मल दी गई स्लेट की तरह, किसी गौरवर्णा की नीले जल में झिलमिल करती देह की तरह सम्मोहित करती है। अतः कविता में गत्यात्मक दृश्य बिंदों का कुशल प्रयोग हुआ है।
Q. 8. प्रात नम की तुलना बहुत नीला शंख से क्यों की गई है ?
उत्तर – प्रात नभ की तुलना बहुत नीला शंख से इसलिए की गई है कि वह द्रष्टा कवि को अपनी स्वच्छता के चलते नीले शंख की तरह स्निग्ध और कांतिमय दिखाई पड़ता है।
Q. 9. नील जल में किसकी गौर देह हिल रही है ?
उत्तर – यह बिंब बहुअर्थच्छायासंपन्न है। यहाँ गौर देह से तात्पर्य चन्द्रमा से भी हो सकता हैवा कवि की कल्पना की किसी गौरवर्णीय सुदर्शना स्त्री से भी हो सकता है, जो प्रातःकाल किसी नीले जल वाले स्रोत में स्नान हेतु प्रस्तुत हुई हो।
Q.10. कविता में आरंभ से लेकर अंत तक की बिब-योजना में गति का चित्रण कैसे हो सका है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कविता अपने आरंभ में एक स्थिति को सूचित करती है। आरंभ का ही बिंब शंख के रूप में प्रकट हुआ है, मानो कवि उषाकाल के वर्णन का शंखनाद करके पवित्र आरंभ कर रहा हो। पुनः रंगों के विविध प्रतिदर्शो के माध्यम से वर्णन गति पकड़ता है। राख से लीपा चौका है जो घर की दिनचर्या के आरंभ की ही प्रतिध्वनि प्रकट करता है। इसी तरह काली सिल को लाल केसर से घुलने का बिंब, स्लेट पर लाल खड़िया मलने का बिंब, या नीले जल में किसी गौर वर्णा की देह के झिलमिलाने का विंब अंततः कविता में एक गत्यात्मक परिवेश खड़ा कर देता है।
Q.11. ‘उघा’ कविता में आकाश के बदलते रंगों का वर्णन करें।
उत्तर – शमशेरवहादुर सिंह ने अपनी इस कविता में उषा के सौंदर्य का वर्णन एक चित्रकार की तरह किया है। वह उषा के सौंदर्य को विविध रंग-विरोधों के कोलॉज के माध्यम से प्रकट करता है। उपा का जादू ऐसा था कि वह द्रष्टा को अपनी विविध वर्णमयी आभा में बांध लेता है। द्रष्टा कवि को उपाकाल का आकाश अपनी स्वच्छता के चलते खूब नीले शंख की तरह लगता है। ओस से भींगे होने तथा स्निग्ध होने की वजह से वह उसी आकाश को राख से लीपे हुए गीले चौके की तरह, लाल केसर से धो दी गई बहुत काली सिल की तरह लाल खड़िया चाक से मल दी गई स्लेट की तरह, किसी गोरे रंग की स्त्री की नीले जल में झिलमिल करती देह की तरह प्रतीत होता है।
Q.12. कहाँ कहाँ की धूप एक जैसी होती है ?
उत्तर – मुक्तिबोध ने अपनी कविता ‘जन-जन का चेहरा एक में एशिया, यूरोप और अमेरिका की गलियों की धूप को एक जैसा बताया है। वस्तुतः यह कविता मुक्तिबोध की संवेदनात्मक विश्वदृष्टि की प्रतिनिधि कविता है। उनका मानना है कि भौगोलिक रूप से भले ही राष्ट्रों या स्थानों या स्थानों के नाम अलग-अलग हों लेकिन वहाँ के गाँव-गलियों व मुहल्लों में रहने वाला लोकसमाज एक जैसा ही होता है। उसके स्वप्न, संघर्ष, इच्छाएँ, शोषण, हार-जीत, मिथक, अंधविश्वास सब प्रायः एक जैसे होते हैं। इसलिए एक जैसी धूप होने का आशय यहाँ दृष्टि और संवेदना की एकरूपता से है।
Q.13. ‘उषा’ कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर – प्रस्तुत कविता में कवि ने उपा के सौंदर्य वर्णन में जिन विबों प्रयोग किया है वह उसे एक चित्रकार की तरह प्रकट करते हैं। लगता है कि वह उपा के सौंदर्य को विविध रंग-विरोधों के प्रतिदर्शों के माध्यम से प्रकट रहा हो। ये विंब कवि द्वारा ग्रामीण परिवारों के दैनिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं और स्थितियों से उठाये गये हैं। कविता अपने आरंभ में एक स्थिति को सूचित करती है। उषाकाल में आकाश के लिए खूब नीले शंख का बिंब प्रकट किया गया है। मानो कवि उपाकाल के वर्णन का शंखनाद करके पवित्र दिनचर्या का आरंभ कर रहा हो। पुनः यही उपा-वर्णन रंगों के विविध प्रतिदर्शों के माध्यम से गति पकड़ता है। राख से लीपा चौका है जो घर की दिनचर्या के आरंभ की ही प्रतिध्वनि प्रकट करता है। इसी तरह काली सिल को लाल केसर से घुलने का बिंब, स्लेट पर लाल खड़िया मलने का बिंब, या नीले जल में किसी गौरवर्णा की देह के झिलमिलाने का बिंब अंततः कविता में एक गत्यात्मक परिवेश खड़ा कर देता है। उषा कहीं न कहीं घर की स्त्री का प्रतीक है जो अपने संपूर्ण दायित्वों के आकाश में दिनभर अलग-अलग कर्तव्य निर्वाह के रंगों में गतिशील होती है। यह कविता प्रकृति, स्त्री और भाषा के बीच गहन सगात्मक संश्लेष का उदाहरण है।
Q.14. उषा’ शीर्षक कविता में विवों को स्पष्ट करें।
उत्तर – शमशेर बिंबों के कवि हैं। अनुभव की व्यापकता और गहनता को बिंव ही प्रकट कर पाते हैं। आरंभ का ही बिंब खूब नीले शंख के रूप में प्रकट हुआ। शंख यानि पवित्रता, स्वच्छता और आकाश के असीम विस्तार का दृश्य बिंब यहाँ कवि ने उषा के सौंदर्य वर्णन में जिन बिवों का प्रयोग किया है वे उसे एक कुशल चित्रकार सिद्ध करते हैं। ये बिंब कवि ग्रामीण परिवारों के दैनिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं और स्थितियों से उठाये गये हैं। द्रष्टा कवि उषाकाल में आकाश को ओस से भींगे तथा स्निग्ध होने की वजह से कभी राख से लीपे हुए गीले चौके की तरह, कभी लाल केसर से धो दी गई बहुत काली मिल की तरह, कभी लाल खड़िया चाक से मल दी गई स्लेट की तरह तो कभी किसी गौरवर्णीय की नीले जल में झिलमिल करती देह की तरह बिंबित करता है। इस तरह यह कविता गत्यात्मक दृश्य विंवों का सघन पोट्रेट सी दिखती है।
उषा Objective Question
1. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब हुआ था?
(क) 13 जनवरी, 1910
(ख) 13 जनवरी, 1911
(ग) 13 जनवरी, 1912
(घ) 13 जनवरी, 1913
उतर -13 जनवरी, 1911
2. शमशेर बहादुर सिंह की मृत्यु कब हुई?
(क) 1993
(ख) 1994
(ग) 1995
(घ) 1996
उतर -1993
3. शमशेर बहादुर सिंह कहाँ जन्मे थे?
(क) नैनीताल, उत्तराखंड
(ख) देहरादून, उत्तराखंड
(ग) हरद्वानी, उत्तराखंड
(घ) रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड
उतर -देहरादून, उत्तराखंड
4. ‘वात बोलेगी’ के लेखक कौन हैं?
(क) शमशेर बहादुर सिंह
(ख) मुक्तिबोध
(ग) अज्ञेय
(घ) मलयज
उतर -शमशेर बहादुर सिंह
5. ‘काल तुझसे होड़ है मेरी’ के लेखक कौन हैं?
(क) अज्ञेय
(ख) मुक्तिबोध
(ग) शमशेर बहादुर सिंह्
(घ) मलयज्
उतर -शमशेर बहादुर सिंह
6. शमशेर बहादुर सिंह ने 1978 में किस देश की यात्रा की?
(क) सोवियत रूस
(ख) युगोस्लाविया
(ग) चीन
(घ) वियतनाम
उतर -सोवियत (ख)
7. विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में शमशेर वहादुर सिंह किस पीठ के अध्यक्ष थे?
(क) निराला
(ख) प्रेमचंद पीठ
(ग) प्रसाद पीठ
(घ) मुक्तिबोध पीठ
उतर -प्रेमचंद पीठ
8. शमशेर बहादुर सिंह ने किस कोश का संपादन किया?
(क) उर्दू हिंदी कोस
(ख) हिंदी उर्दू कोश
(ग) उर्दू उर्दू कोश
(घ) हिंदी-हिंदी कोश
उतर -उर्दू हिंदी कोस