कड़बक |
कड़बक कवि के बारे में
जायसी हिन्दी काव्य में सूफी परंपरा के अन्यतम कवि हैं। उन्होंने भारतीय लोकजीवन में व्याप्त प्रेमकथाओं को सूफी साधना पद्धति से जोड़ते हुए आध्यात्मिक ऊँचाई दी। लेकिन इस आध्यात्मिकता से ज्यादा महत्वपूर्ण इसकी लोकपरकता ही है, क्योंकि जायसी ने ‘पद्मावत’ जैसी विराट प्रेमकथा को लोकपरक एवं विशुद्ध अवधी में रचते हुए लोकजीवन की अद्भुत छटा प्रस्तुत की है।
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कड़बक पाठ का सारांश
यहाँ प्रस्तुत कड़बक उनकी रचना पद्मावत के ही आरंभिक तथा आखिरी छंदों से उद्धृत हैं। पहले कड़बक के रूप में अधिक गुण एवं कर्म की महिमा का संदेश दिया गया है। दूसरे कड़बक में जायसी की रचना-प्रक्रिया का सूक्ष्म विश्लेषण मिलता है । वे एक विनम्र स्वाभिमान के साथ अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधत्व को प्रकृति में मौजूद उदाहरणों के माध्यम से गरिमामय सिद्ध करते हैं। वे रूप से अधिक अपने गुणों की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं। कवि ने किसी शारीरिक दोष के रहते हुए भी व्यक्ति के स्वभाव की सुंदरता को ज्यादा श्रेयस्कर बताया है। इसी संदर्भ में वे कलंक या कोयले के द्वारा काँच यानि कच्चे लोहे को तपाकर कंचन यानि सोना बनाने की प्रक्रिया को प्रतीकात्मक रूप उद्धृत करते हैं। असुंदर वस्तुओं का अनुप्रयोग सुदर वस्तुओं के निर्माण का साधन होता है, अतः उनका सौंदर्य भी कम नहीं है। दूसरे कड़बक में जायसी कवि को ही उसके अमरत्व का साधन मानते हैं। यदि कोई कृति अपने कलेजे के खून से अर्थात् कष्टसाध्य तन्मयता से रची जाय तो उसकी सुगंध देश काल की परिधि को लांघ कर चिरंतन बन जाती है। कवि यह कहना चाहता है कि एक दिन वह भी नहीं रहेगा पर जो भी इस कहानी को पढ़ेगा वही उसे दो शब्दों में स्मरण करेगा। किसी भी सच्चे कवि की काव्यसाधना उसके जीवनानुभवों से जुड़ी होती है। इस कड़बक के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि एक श्रेष्ठ कवि महान कलाकार की तरह अपने जीवन के संघर्षों और चुनौतियों को अपने सौंदर्य बोध और कलादृष्टि के प्रभाव से उदात्त और गरिमामय बना देता है।
कड़बक Subjective Question
Q.1. व्याख्या करें
“धनि सो पुरुख जस कीरति जासू। फूल मरे पर मरै न बासू।”
उत्तर – यह पदांश जायसी कृत पदमावत के उपसंहार खंड से हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत में संकलित उनके द्वितीय कड़बक से लिया गया है। यहाँ कवि अपने काव्य और उसकी कथासृष्टि के महत्व के बारे में बताते हुए कहता है कि जिस प्रकार फूल के नष्ट हो जाने पर भी उसकी खुशबू नष्ट नहीं होती, उसी प्रकार व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी लोग उसके यश को याद रखते हैं।
Q. 2. मलिक मुहम्मद जायसी की प्रेम संबंधी अवधारणा क्या है ?
उत्तर – मलिक मुहम्मद जायसी मूलतः सूफी कवि हैं। सूफी दर्शन में प्रेम भक्ति का ही एक रूप है। खुदा (स्त्री रूपी) को हासिल करने के लिए बंदा या भक्त (पुरुष रूपी) प्रेम की अनवरत साधना करता है। इश्कमज़ाजी से शुरू करके वह इश्कहकीकी तक पहुँचता है। यह प्रेम का भाव मनुष्य को सांसारिकता, भौतिकता और लोभ-लाभ की संकीर्णता से ऊपर उठाकर उसकी चेतना को पवित्र और आनंदमय बनाता है। यहाँ प्रस्तुत कड़वक में जायसी ने प्रेम की सार्थकता शरीर से परे मानवमात्र के लिए सौंदर्य का विधान रचने में ही मानी है। जायसी ने पद्मावत में भी मानव-प्रेम को स्वर्ग की तरह पवित्र बताते हुए लिखा है, ‘मानुष प्रेम भयउ बैकुंठी, नाहिं तो काह, छार भरि मूठी।’
Q.3.भाव स्पष्ट करें–
“जो सहि अंबहि डांम न होइ। ती लहि सुगंध बसाइ न सोई || “
उत्तर – जब तक आम में मंजरियाँ या चौर नहीं आ जाते, तब तक उसकी सुगंध नहीं फैलती। कवि यहाँ कहना चाहता है कि जब तक कवि की कृति अभिव्यक्त नहीं होती, तब तक उसके आंतरिक सौंदर्य का भान दूसरों को नहीं होता।
Q. 4. ‘रकत के लेई’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – जायसी ने अपनी काव्य प्रक्रिया के संदर्भ में यह पदांश प्रयुक्त किया है। उनका कहना है कि प्रेम की जिस पीड़ा को अपनी कविता में मैं ढालता हूँ, उसमें अपनी देह और आत्मा दोनों को समर्पित कर देता हूँ। शरीर के रक्त को काव्य साधना में लेई की तरह प्रयुक्त करता हूँ अर्थात् गहन आत्मीयता के साथ मैं अपनी रचना के विभिन्न सूत्रों और संदर्भों को जोड़ता हूँ।
Q. 5. ‘मुहम्मद यहि कवि जोरि सुनावा।’ यहाँ कवि ने ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है ?
उत्तर – यहाँ कवि ने ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग अपनी रचना प्रक्रिया पर बलाघात देने के संदर्भ में किया है। ‘जोरि’ का तात्पर्य है कि कवि जायसी ने अपना यह काव्य जीवन जगत की अनुभूतियों और अपनी काव्य-प्रतिभा को एक साथ रख कर बनाया है।
Q. 6. पहले ‘कड़वक’ में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर – पहले कड़वक में जायसी ने रूप से अधिक गुण एवं कर्म की महिमा का संदेश दिया है। कवि ने किसी शारीरिक दोष के रहते हुए भी व्यक्ति के स्वभाव की सुंदरता को ज्यादा श्रेयस्कर बताया है। इसी संदर्भ में वे कलंक या कोयले के द्वारा काँच यानि कच्चे लोहे को तपाकर कंचन यानि सोना बनाने की प्रक्रिया को प्रतीकात्मक रूप से उद्धृत करते हैं। असुंदर वस्तुओं का अनुप्रयोग सुंदर वस्तुओं के निर्माण का साधन होता है, अतः उनका सौंदर्य भी कम नहीं है। जायसी एक विनम्र स्वाभिमान के साथ अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधत्व को प्रकृति में मौजूद उदाहरणों के माध्यम से गरिमामय सिद्ध करते हैं। वे रूप से अधिक अपने गुणों की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं।
Q. 7. दूसरे कड़वक का भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर – दूसरा कड़वक जायसी कृत पद्मावत के उपसंहार खंड से लिया गया है। यहाँ कवि अपने काव्य और उसकी कथासृष्टि के बारे में बताता है। वह कहता है कि उसने इसे रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है, जो गाढ़ी प्रीति के नयनजल में भिगोई हुई है। अब न वह राजा रत्नसेन हैं और न वह रूपवती पद्मावती रानी है, न वह बुद्धिमान सुआ है और न राघवचेतन या अलाउद्दीन ही। इनमें से कोई भी आज नहीं रहा, किन्तु उनके यश के रूप में उनकी कहानी रह गई है। फूल झड़कर नष्ट हो जाता है, पर उसकी खुशबू रह जाती है। कवि यह कहना चाहता है कि एक दिन वह भी नहीं रहेगा, पर उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाएगी। जो भी इस कहानी को पढ़ेगा, वही उसे दो शब्दों में स्मरण करेगा। कवि का अपने कलेजे के खून से रचे इस काव्य के प्रति यह आत्मविश्वास अत्यंत सार्थक और बहुमूल्य है। यह किसी भी सच्चे कवि की आत्मसाधना का प्रतिदर्श बन सकता है। कवीर ने भी कहा था यह जनु जानो गीत रे, यह निज ब्रह्म विचार/केवल कहि समुझाइया, आतमसाधन सार रे ।’
Q.8.कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से क्यों की है ?
उत्तर – कवि दर्पण के स्वभाव को निर्मल करने वाला मानता है। वह एक विनम्र स्वाभिमान के साथ कहता है कि सभी रूपवान लोग अपने मुख को थाम कर उस दर्पण में देखने के लिए प्रतीक्षा करते रहते हैं, ताकि उनके अंदर का मैल भी स्वच्छ हो सके। इसी प्रकार, उनके एक नेत्र को भी लोग इसी आशा में देखने को उत्सुक रहते हैं कि यह दर्पण के समान नेत्र उनके अंदर के दोष को भी दूर कर ।
Q. 9. पहले कड़बक में कलंक, कांच और कंचन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – पहले कड़बक में कवि ने किसी शारीरिक दोष के रहते हुए भी व्यक्ति के स्वभाव की सुंदरता को ज्यादा श्रेयस्कर बताया है। इसी संदर्भ में ये कलंक या कोयले के द्वारा कांच यानि कच्चे लोहे को तपाकर कंचन यानि सोना बनाने की प्रक्रिया को प्रतीकात्मक रूप से उ करते हैं। असुंदर वस्तुओं का अनुप्रयोग सुंदर वस्तुओं के निर्माण का साधन होता है, अतः उनको सौंदर्य भी कम नहीं है।
Q.10. पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर – जायसी चेहरे पर चेचक के दाग से कुरूप हो चुके थे। एक आँख खो चुके थे। जाहिर है कि उनकी इस कुरूपता पर कइयों ने कटाक्ष भी किया होगा। इससे विचलित हुए बिना वे एक विनम्र स्वाभिमान के साथ अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधत्व को प्रकृतिप्राप्त दृष्टांतों द्वारा महिमामंडित करते हुए रूप से अधिक अपने गुणों की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं। वे बताते हैं कि चन्द्रमा पर भी दाग है लेकिन वह पूरे संसार को आलोकित करता है। शुक्र तारा भी नक्षत्रों के बीच अकेले भासमान रहता है। समुद्र का खारापन उसे अपार बनाता है। सुमेरु जब त्रिशूल द्वारा नष्ट कर दिया गया तो वह कंचनगिरि बनकर पूरे आकाश तक व्याप्त हो गया। जब तक घरिया में कोयले से कच्चे सोने को तपाया नहीं जाता, तब तक वह खरा नहीं बन पाता। अतः कवि जायसी रूपहीन जरूर है लेकिन इससे उसकी गुणवत्ता में कोई फर्क नहीं पड़ता।
Q. 11. ‘कड़वक’ के कवि की सोच क्या है ?
उत्तर – कवि ने इच्छा प्रकट की है कि जिस प्रकार फूल के नष्ट हो जाने पर भी उसकी खुशबू नष्ट नहीं होती, उसी प्रकार से कवि के मृत्यु के बाद भी लोग उसके यश को याद रखें। यह चूँकि कुरूप है लेकिन अपनी रचनाओं में एक अपार मानवीय सौंदर्य और प्रेम का विधान करता है, अतः कवि चाहता है कि उसकी देह की समाप्ति के बाद भी लोग उसे उसकी इन सुंदरतम कृतियों की वजह से याद रखें।
Q. 12. कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है ? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएं।
उत्तर – कवि ने इच्छा प्रकट की है कि जिस प्रकार फूल के नष्ट हो जाने पर भी उसकी खुशबू नष्ट नहीं होती, उसी प्रकार कवि की मृत्यु के बाद भी लोग उसके यश को याद रखें। यह चूँकि कुरूप है लेकिन अपनी रचनाओं में एक अपार मानवीय सौंदर्य और प्रेम का विधान करता है, अतः कवि चाहता है कि उसकी देह की समाप्ति के बाद भी लोग उसे उसकी इन सुंदरतम कृतियों की वजह से याद रखें।
Q. 13. ‘कड़बक कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर – पहले कड़वक में रूप से अधिक गुण एवं कर्म की महिमा का संदेश दिया गया है। कवि ने किसी शारीरिक दोष के रहते हुए भी व्यक्ति के स्वभाव की सुंदरता को ज्यादा श्रेयस्कर बताया है। इसी संदर्भ में वे कलंक या कोयले के द्वारा काँच यानि कच्चे लोहे को तपाकर कंचन यानि सोना बनाने की प्रक्रिया को प्रतीकात्मक रूप से उद्धृत करते हैं। असुंदर वस्तुओं का अनुप्रयोग सुंदर वस्तुओं के निर्माण का साधन होता है, अतः उनका सौंदर्य भी कम नहीं है। दूसरे कड़वक में जायसी की रचना प्रक्रिया का सूक्ष्म विश्लेषण मिलता है। कवि ने यह बताया है कि यदि कोई कृति अपने कलेजे के खून से अर्थात् कष्टसाध्य तन्मयता से रची जाय तो उसकी सुगंध देश-काल की परिधि को लांघ कर चिरंतन बन जाती है। कवि भी सामान्य मनुष्य की तरह मर्त्य है लेकिन उसके भावपूर्ण और सुंदर शब्द-विन्यास उसे अमर कर देते हैं। इस कड़वक का मूलभाव यह है कि एक श्रेष्ठ कवि महान कलाकार की तरह अपने जीवन के संघषों और चुनौतियों को अपने सौंदर्य बोध और कलादृष्टि के प्रभाव से उदात्त और गरिमामय बना देता है ।
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कड़बक Objective Question
1. मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म अनुमानतः कव हुआ था?
(क) 1490
(ख) 1491
(ग) 1492
(घ) 1943
उतर – 1492
2. मलिक मुहम्मद जायसी का निधन अनुमानतः कव हुआ था?
(क)-1548
(ख) 1549
(ग) 1550
(घ) 1551
उतर -1548
2. जायसी का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
(ख) काशी, उत्तर प्रदेश
(ग) अमेठी, उत्तर प्रदेश
(घ) झांसी, उत्तर प्रदेश
उतर – अमेठी, उत्तर प्रदेश
3. जायसी की सबसे प्रसिद्ध रचना कौन-सी है?
(क) चित्ररेखा
(ख) अखरावट
(ग) आखिरी कलाम-
(घ) पद्मावत
उतर – पद्मावत
4. ‘पद्मावत’ कैसी रचना है?
(क) वीर कथा
(ख) भक्ति कथा
(ग) प्रेम कथा
(घ) विरह
उतर – प्रेम कथा
5. ‘प्रेम की पीर’ के कवि कौन हैं?
(क) कबीर
(ख) मलिक मुहम्मद जायसी
(ग) अब्दुर्रहीम खानखाना
(घ) मीराबाई
उतर – मलिक मुहम्मद जायसी
6. पद्मावत’ की रचना किस छंद में हुई है?
(क) कड़बक
(ख) छप्पय
(ग) सवैया
(घ) कवित्त
उतर – कड़बक
7. ‘पद्मावत’ किस भाषा का काव्य है?
(क) भोजपुरी
(ख) अवधी
(ग) मैथिली
(घ) बर्जभाषा
उतर – अवधी
8. किसे ‘प्रेम की पीर’ का कवि कहा गया है?
(क) जायसी
(ख) सूरदास
(ग) भूषण
(घ) नाभादास
उतर – जायसी
Sir subjective questions upload kijiye plz